short story
चलते -चलते
दिल को छू लेने वाली कुछ कहानियां हमारे आस पास ही मिल जाती हैं। बस फर्क इतना है कि हम किसी से कुछ कहते नही हैं और कोई हमसे अपनी बात साझा नही करना चाहता जब तक कि आप खुद पहल न करें।
तेलियरगंज के बस स्टॉप पर खड़ी हुई लड़की बेताब हो कर बार बार अपनी कलाई में बंधी हुई घड़ी को देखती और किसी को फोन लगाती । जब फोन नही पिकअप होता तो वह और भी परेशान हो जाती और बेसब्री से आती हुई ऑटो को देखने लगती । मैं अपनी बाइक वहीं साइड में लगा कर अपने मित्र धीरज त्रिपाठी को फोन कर रहा था। धीरज से बात हुई तो वह व्यस्त थे और बोले कि 20 मिनट में मैं आ रहा हूँ।
मैं वहीं बाइक पर ही बैठा रहा। कितनी सारी बसें आयीं ऑटो आयीं और चली गयी लेकिन वह लड़की जो बस स्टॉप पर किसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी वह नही आया।
इंतज़ार की इंतहा हो गयी और आखिर में वह थक हार कर वहीं बस स्टॉप पर रखीं हुई बेंच पर बैठ कर रोने लगी।
मुझे लगा कुछ गड़बड़ है। मैं न चाहते हुए भी उसके पास जाना पड़ा । एक पत्रकार के नजरिये से मुझे यह उचित भी लगा।
" हाय ......क्या मैं यहां बैठ सकता हूँ ?" यह जानते हुए भी स्टॉप सार्वजनिक जगह है कोई भी कहीं भी बैठ सकता है। मगर ऐसा मैने जान बूझ कर किया। क्योंकि मुझे उस से बात करने का बहाना चाहिए था।
"जी ....जी...."। उसने रुमाल से अपनी लाल हो आयीं आंखों को पोछते हुए जवाब दिया।
"थैंक्यू ...." कहते हुए मैं ठीक उसके बगल बैठ गया।
वह बार बार रुमाल से अपनी आंखों को पोछती मगर हर बार उसकी आंखें गीली हो जा रहीं थीं।
" माफ करियेगा ....मैं बहुत देर से देख रहा हूँ आप कुछ परेशान सी दिख रही हैं"। मैंने सीधा सा सवाल किया ।
" जी ...न .....नही ..." वह मेरे सीधे से सवाल पर सकपका गयी।
"आप डरिये नही ......बताइये क्या प्रॉब्लम है आपको ?"
मैंने उससे दुबारा पूछा
कुछ देर खामोश रहने के बाद वह फफक कर रोने लगी और सुबकते हुए मुझे बताया
" सर मेरी माँ को डेंगू हो गया है वो हॉस्पिटल में एडमिट हैं उन्हें ब्लड की जरूरत थी। मैंने अपने बॉय फ्रेंड से हेल्प मांगी थी उसी का इंतज़ार कर रही थी ..मगर अब लगता है वह नही आएगा "। कहते हुए वह फिर रोने लगी ।
मैं समझ गया कि वह बार बार घड़ी क्यो देख रही थी और फोन किसे कर रही थी।कुछ देर सोच कर मैंने उससे पूछा " आपके घर मे और कौन कौन है ...?"
"जी और कोई नही है पापा की डेथ बहुत पहले हो गयी। मां स्कूल में खाना बनाने का काम करती हैं और मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ।.....एक छोटा भाई है जो अभी पढ़ता है "।
उसने मुझे बताया।
मैं सोच में पड़ गया .....क्या करूँ .....
अचानक से खयाल आया कि क्यो न मैं ही ब्लड डोनेट कर दूँ.... रक्त दान महादान ....सोच कर मैं उसके साथ चल पड़ा।
रास्ते भर उसे ढांढस बंधाता रहा।
ट्रैफिक चौराहे पर स्थित ब्लड बैंक गया अपनी सारी जांच करवाई और सारा खर्च मैंने खुद दिया। एक यूनिट ब्लड दिया और उसके बदले ब्लड बैंक ने मुझे मरीज से मैच करता एक यूनिट ब्लड दिया।
मैंने उसे ब्लड का थैला देते हुए उसकी निगाहों में देखा तो मुझे बड़ी संतुष्टि मिली।
सच कहूं तो जब हम किसी जरूरत मंद इंसांन कि सहायता करते हैं तो उससे मिलने वाली खुशी अनमोल होती है।
न मैंने उसका नाम पूछा न अपना नाम बताया लेकिन कुछ था जो मन को सुकून दे गया।
अर्जुन इलाहाबादी